हरिगीतिका छंद :- जगदीश "हीरा" साहू
हरिगीतिका छंद अरजी हवय हनुमान जी अरजी हवय हनुमान जी, पूरा करव मनकामना। ले आस ठाड़े हे भगत, झन होय दुख ले सामना।। अब टोर माया मोह ला, प्रभु जी सुनव आराधना। मन मा रहय प्रभु नाम हा, सब छोड़ करिहौं साधना।।1।। मोर गाँव सुनता लगा के सब रहव, मिलके करव सब काम गा। बनही सरग तब गाँव हा, होही सबो जग नाम गा।। बीते जिहाँ ननपन हमर, खेलेन कतको खेल गा। झन छोड़ जाबे भूल के, लगही शहर हर जेल गा।।2।।