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हरिगीतिका छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

हरिगीतिका छंद अरजी हवय हनुमान जी अरजी हवय हनुमान जी, पूरा करव मनकामना। ले आस ठाड़े हे भगत, झन होय दुख ले सामना।। अब टोर माया मोह ला, प्रभु जी सुनव आराधना। मन मा रहय प्रभु नाम हा, सब छोड़ करिहौं साधना।।1।। मोर गाँव सुनता लगा के सब रहव, मिलके करव सब काम गा। बनही सरग तब गाँव हा, होही सबो जग नाम गा।। बीते जिहाँ ननपन हमर, खेलेन कतको खेल गा। झन छोड़ जाबे भूल के, लगही शहर हर जेल गा।।2।।

रूपमाला छंद :- शारदे माँ

  रूपमाला छंद :- शारदे माँ शारदे   माँ   ज्ञान   भरदे,  मन्द   मति   मा   मोर। कृपा बिन अँधियार जिनगी, आय  करव अँजोर।। हाथ    ले  झनकार   वीणा,  छेड़    सुग्घर    राग। बिसर जावय  दुःख सुनके,  सँवर  जावय  भाग।।1।। कर  सवारी  हंस  आहू,  संग   बाँटत  ज्ञान। बसे राहय भगति  मन मा, दे  इही वरदान।। कभू झन भटकय दिखाहू, नेक रसता जोर। मोर  जिनगी ला  सजाहू,  हे भरोसा  मोर।।2।। तुँहर  महिमा  वेद  गावय,  संत  करय   बखान। कंठ कोकिल करव कहिथँव, करँव  मैं गुनगान।। सात  स्वर  सुर  ताल  देवव, लगे  भीड़  समाज। हाथ जोड़े खड़े  सब जन,  दया कर दव आज।।3।। माथ  मा  चंदन  लगावँव,  चरण रज धर शीश। रूपमाला  छंद   गावँव,  आज   मैं   जगदीश।। जगत मा संस्कार बगरय, मिलय निरमल ज्ञान। जगत जननी  सुनव  अरजी, इही दव वरदान।।4।। जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता) कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार                  ---------00---------